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HomeDainik Bhaskarनंगे पैर, पैदल, साइकिल से, ट्रकों पर और गाड़ियों में भरकर अपने घर को चल पड़े लोगों की कहानियां कहतीं चुनिंदा तस्वीरें
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नंगे पैर, पैदल, साइकिल से, ट्रकों पर और गाड़ियों में भरकर अपने घर को चल पड़े लोगों की कहानियां कहतीं चुनिंदा तस्वीरें
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देश में जब लॉकडाउन हुआ, उसके अगले दिन से ही देशभर में प्रवासी अपने-अपने गांवों को रवाना होने लगे थे। इनमें मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा थी। 53 दिनों बाद भी यह सिलसिला जारी है। पिछले 3 हफ्तों से तो महाराष्ट्र से एमपी, यूपी, बिहार समेत बाकी राज्यों में लौटने वाले प्रवासियों की बाढ़ सी उमड़ पड़ी। महाराष्ट्र से जिस रास्ते यह मजदूर अपने घरों के लिए निकले हैं, ऐसे ही एक रास्ते पर दैनिक भास्कर के दो रिपोर्टर विनोद यादव और मनीषा भल्लाभी चल रहे हैं। प्रवासियों के साथ इनका यह सफर सिर्फ इसलिए है ताकि 40 डिग्री तापमान में ट्रकों, टैम्पो में ठूसठूस कर भरे गए और पैदल चल रहे लोगों की अनसुनी कहानियां आप तक भी पहुंच सके। रविवार दोपहर मुंबई से शुरू हुए सफर के दौरान उन्होंने जो कुछ अपने कैमरे में कैद किया, वो आपसे साझा कर रहे हैं....
नासिक हाईवे पर ठाणे का पहला नाका है, खारेगांव टोल। यहां दोपहर करीब 2 बजे 1500-2000 प्रवासी मजदूरों की भीड़ थी। इस जगह से महाराष्ट्र सरकार इन्हें महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश बॉर्डर तक छोड़ रही है। यहां सुबह 4 बजे से लोग लाइन में लगे थे। दोपहर 2 बजे जब तापमान 40 डिग्री पहुंच गया तो इन लोगों ने अपने-अपने बैगों को लाइन में लगाकर टीन शेड में थोड़ा आराम किया।
नासिक हाईवे पर कसारा गांव में 29 लोगों की यह टोली मिली। ये महाराष्ट्र के रायगढ़ से 15 मई को निकले हैं और असम जा रहे हैं। जाने के लिए जब कोई साधन नहीं मिला तो इन लोगों ने 5-5 हजार रुपये घर से बुलवाए और नई साइकिलें खरीदी। अब आगे 2800 किमी तक ये लोग इन्हीं साइकिलों के सहारे अपने घरों तक चलने वाले हैं।
नासिक हाईवे पर दोपहर साढ़े तीन बजे एक टेंपो खड़ा था। इसमें सवार सभी 50 लोग रोड के बगल में खड़े थे। इन लोगों का कहना था कि मुंबई से 200 किमी दूर आकर ड्राइवर और ज्यादा पैसे मांगने लगा जब हमने मना किया तो गाड़ी किनारे खड़ी कर सो गया, दोपहर से हम उसके उठने का इंतजार कर रहे हैं।
कोमल यादव छत्तीसगढ़ के राजनंद गांव से पैदल निकले हैं। 4 दिनों से लगातार चल रहे हैं। बेटी भूमिका 4 साल की है। पैदल चलते-चलते वह थक गई है। इसलिए पिता ने उन्हें कांधे पर बिठा लिया है। इनके साथ परिवार के 5 लोग और भी हैं। सभी पैदल चले आ रहे हैं।
नासिक नाके पर जिन भी ट्रकों में मजदूर बैठे दिखाई देते हैं। उन्हें आरटीओ और पुलिसवाले नीचे उतार लेते हैं। इन लोगों का यहां नाम-पता लिखकर बस के द्वारा महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश बॉर्डर पर छोड़ा जाता है।
यह तस्वीर महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश बॉर्डर पर स्थित बड़ी बिजासन माता मंदिर की है। महाराष्ट्र से मजदूरों को यहीं छोड़ा जा रहा है। यहां मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों की सरकारों ने अपने-अपने नागरिकों को ले जाने के लिए बोर्ड तो टांगे हैं लेकिन बस आते हुए नजर नहीं आती। नतीजतन लोग यहां से भी अपना-अपना बंदोबस्त कर आगे बढ़ रहे हैं। यहां रात 11 बजे 4 से 6 हजार लोगों की भीड़ थी।
बिजासन माता मंदिर पर मीरा यादव बस का इंतजार कर रही हैं। हाथ में 15 दिन का बच्चा है। सिजेरियन के जरिए बच्चा हुआ है। वे अपने बच्चे के साथ अकेली हैं। ट्रक वाले को 2 लोगों का किराया देने के पैसे नहीं थे इसलिए पति मुंबई में ही रूके हैं। मीरा को यूपी के सिद्धार्थनगर जाना है। टांके दिखाते हुए वे कहती हैं, किसी का हाथ लग जाता है तो दर्द के मारे जान निकल जाती है।
देवास टोल नाके के पास एक 16 लोगों का परिवार खड़ा दिखाई दिया। मुंबई के वाशी से यह परिवार एक छोटे फूड ट्रक में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के लिए निकला है। परिवार में पांच महिलाएं है, जिनमें दो महिलाएं गर्भवती हैं। अमृता को पांचवा महीना लगा है और ममता को आठवां। तीन दिन से ये दोनों गर्भवती महिलाएं ट्रक में सिकुड़ कर बैठी हैं। कहती हैं अभी तो तीन दिन और बैठकर जाना है।
इंदौर-देवास बायपास पर महाराष्ट्र से आ रहीं ऐसी कई छोटी-बड़ी गाड़ियां हैं, जिनमें लोग ठसाठस भरे हुए हैं। इनके लिए प्रशासन की कोई बस सुविधा नहीं है।
झांसी से ठीक 40 किमी पहले एक के बाद एक कई ऑटो मिले। ये ऑटो उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ रहे हैं। एक ऑटो चालक ने बातचीत में बताया कि मुंबई से 60% से ज्यादा ऑटोवाले अपने परिवारों के साथ यूपी, बिहार के अपने गांवों की ओर निकल गए हैं।
तस्वरी शिवपुरी-झांसी बॉर्डर की है। यहां यूपी के गांवों में जाने के लिए प्रवासी इकट्ठा हुए हैं। पुलिस ने इन्हें लाइनों में लगा दिया है। जैसे-जैसे यूपी के अलग-अलग जिलों से बसें आती हैं, वैसे-वैसे पुलिस 10-10 लोगों के झूंड में लोगों को बसों में बैठाती है।
शिवपुरी में खत्म हो रही मध्यप्रदेश बॉर्डर पर हाल यह है कि लोग यूपी की बसों में चढ़ने के लिए बसों की खिड़कियों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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